राजौरी गार्डन, नई दिल्ली — बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर राजौरी गार्डन में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य तथागत गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को जनसामान्य तक पहुंचाना और उनके अनुकरण से व्यक्ति व राष्ट्र के सशक्तिकरण पर प्रकाश डालना था। इस कार्यक्रम का संयोजन श्री हरिश चावला, संयुक्त निदेशक, ईरेडा के मार्गदर्शन में हुआ, जबकि अध्यक्षता श्री एस.पी.एल. सोढ़ी ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. नेतराम ठगेला, अध्यक्ष, फैडरेशन रहे।

बुद्धम् शरणं गच्छामि: विवेक से ही समाधान संभव
दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलि के साथ कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए डॉ. नेतराम ठगेला ने कहा कि तथागत बुद्ध ने ‘बुद्धम् शरणं गच्छामि’ कहकर स्पष्ट किया कि किसी भी कार्य को करने या न करने का निर्णय बुद्धि और विवेक से ही लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “बुद्ध की सोच यह है कि किसी भी समस्या का समाधान समूह चर्चा, विचार-विमर्श और लोकतांत्रिक तरीके से ही संभव है।”
उदाहरण स्वरूप उन्होंने हाल ही में पहलगांव में हुए आतंकी हमले के संदर्भ में राहुल गांधी द्वारा संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग को ‘संघम् शरणं गच्छामि’ की भावना से जोड़ा। डॉ. ठगेला ने स्पष्ट किया कि समूह चर्चा और सामूहिक निर्णय ही लोकतंत्र की मजबूती का आधार हैं, और यही परंपरा बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान में समानता, बंधुता और लोकतंत्र के रूप में अपनाई।
धम्मम् शरणं गच्छामि: आचरण आधारित धर्म की परिभाषा
डॉ. ठगेला ने ‘धम्मम् शरणं गच्छामि’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि सिर्फ वही धर्म मान्य है, जो तर्क और बुद्धि से प्रमाणित हो तथा जिसका पालन आचरण में परिलक्षित हो। उन्होंने कहा कि अन्य मतावलंबियों ने भी जीवन में दुःख की व्याख्या की है, किंतु बुद्ध ने दुःख का मूल कारण “तृष्णा” को बताया, न कि पूर्व जन्मों के पाप को।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि दुःखों का समाधान किसी बाहरी स्थान (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च) में नहीं, बल्कि व्यक्ति के भीतर ही अष्टांग मार्ग के पालन में है। यही बौद्ध दर्शन की वास्तविक शिक्षा है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
बौद्ध मार्ग : पाखंड रहित सुख की ओर
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री एस.पी.एल. सोढ़ी ने कहा, “डॉ. ठगेला साहेब ने गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को अत्यंत सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘गागर में सागर’ भरने जैसा कार्य किया है। बुद्ध ने पाखंड और दिखावे से अलग होकर वास्तविक सुख का मार्ग दिखाया।”
इसके अतिरिक्त श्री जय सिंह ने विपश्यना ध्यान के 10 दिवसीय कोर्स के अनुभवों को साझा किया, जो आत्म-परिष्कार और मानसिक शांति का सशक्त माध्यम है। संयोजक श्री हरिश चावला ने ‘आना पाना’ ध्यान की विधि का अभ्यास भी सभी उपस्थितजनों को करवाया।
विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
इस अवसर पर कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उपस्थित रहे, जिनमें योगा टीचर अलका, प्रियंका चावला, पावरग्रिड के डीजीएम अखिल सिंगल, श्री सुनील नंदा (चेयरमैन), श्रीमती मंजु गौतम (अध्यक्ष, नारी अंतरिक्ष संगठन), सामाजिक उत्थान पत्रिका की संपादक बिमला ठगेला और समीर प्रमुख रूप से शामिल थे। कार्यक्रम के समापन पर सभी अतिथियों एवं आमजन के बीच लस्सी का वितरण कर बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं दी गईं।
निष्कर्ष : बुद्ध के मार्ग पर चलकर ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव
बुद्ध पूर्णिमा का यह आयोजन न केवल बौद्ध दर्शन की महत्ता को उजागर करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि व्यक्ति और राष्ट्र दोनों की मजबूती आत्मविश्लेषण, विवेक और सामूहिक विमर्श से ही संभव है। गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ आज भी सामाजिक समरसता, शांति और विकास के लिए पथप्रदर्शक हैं।